बात
उन दिनों की हैं जब मैं स्कूल में पढ़ती थी. जब हम साड़ी सहेलियां स्कूल से निकलती
तो रास्ते में एक करौंदे का पेड़ था. उस पर करौंदे हर साल टूटकर फलता था. हम बच्चों
को उसे देखकर बहुत लालच आती थी और हम हर रोज़ उस करौंदे को तोड़ने के लिए ललचाते हुए
वहां पहुंच जाते. लेकिन जिस आंटी का वो पेड़ था वो बड़ी ही खतरनाक टाइप की महिला थी.
वो हमेशा हमें बुरी-बुरी गालियाँ और चिल्ला कर काफ़ी देर तक कोसती रहती थी. लेकिन
हम थी कि हमारा आनंद उनके चिल्लाने से और अधिक बढ़ जाता. अपनी सारी सहेलियों में
मैं बड़ी डरपोक थी क्योंकि मुझे दर होता कि अगर मेरे पापा को पता चल गया तो मेरी
इज्ज़त चली जायेगी इसलिए मैं हमेशा कहती कि मैं करौंदा खाऊँगी तोज़रुर लेकिन
तुम्हारी चोरी में मैं शामिल नहीं होंगी. अतः मुझे हमेशा इस बात की ड्यूटी मिलती
कि जैसे ही वह आंटी दरवाज़ा खोले तुम रास्ते पर खड़े होकर गाना गाना शुरू कर देना
ताकि हमें समझ में आ जाए कि हमें भागना हैं. इस प्रकार हम रोज़ करौंदे तोड़ते और दूर
जाकर मिल बांटकर खा लेते. फिर अपने-अपने घर चले जाते.
लेकिन हमारी चोरी कभी-न-कभी तो पकड़ी ही
जाती. सो पकड़ी गई, वो आंटी संयोंग से मेरे घर में रहने वाले किरायदार की बहन थी और
अपने भाई पास आई हुई थी. संयोंग से मैं उसी वक्त उनके घर पहुंच गई. मेरे यहाँ रहने
वाली आंटी ने मुझे उन आंटी से मिलवाया और बताया कि ये मेरे मकान मालिक की बेटी हैं
और पढ़ने में बहुत तेज़ हैं. फिर क्या था उन्होंने मुझे देखते ही पहचान लिया वो झट
से बोल पड़ी अरे ये तो वही लड़की हैं जो मेरे घर के सामने रोज़ गाना गाती रहती हैं.
“अच्छा
तुम गाना भी गाती हो.”
“हाँ,
पूछों न इससे”
“नहीं
आंटी ऐसा कुछ नहीं हैं मैं तो बस टाइम पास करने के लिए थोड़ा बहुत गा लेती हूं.”
लेकिन उन आंटी ने तो सोच रखा था कि
आज इसकी पोल खोलनी हैं. सो उन्होंने कहाँ कि, “कहीं उन चोरों को बचाने के लिए तो
नहीं गाती हो.” “नहीं, आंटी ऐसी बात नहीं हैं.” मेरी आंटी ने मेरा सपोर्ट किया और
मेरी चोरी पकड़ में आते-आते बाख गई. आज भी मैं उन दिनों को याद करके हँस लेती हूं.
क्या उम्र थी क्या फ़साना था
एक हम थे और हमारा गाना था!!!
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