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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

शनिवार, 13 मई 2017

धरती एक रंगमंच

नर बनकर के इस धरती पर
समझो जग को न तुम अपना
समझो जिसको यह स्वार्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन का
जिस गौरव के तुम लायक नहीं
उस गौरव का तुम्हे खेद कहाँ
नर हो न निराश करो मन को
जग में आकर कुछ काम करो
सब घुल मिलकर कुछ अपना कर
थे ख़ास वहां, हो ख़ास यहाँ
कुछ ऐसा मिलकर काम करो
जग हैं अपना यह भ्रम न करो
बस रुकना हैं कुछ बरस यहाँ
फिर चल देना अपनी मंजिल
अब राह बना लो मंजिल की
कुछ काम करो कुछ काम करो
नर हो न निराश करो मन को

हरदम खुद पर विश्वास करो!

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