गांव की गलियों के नुक्कड़ पर
बैठा चना फोड़कर खाता
वर्षों बीत गया बैठो को
बाट जोहते बेटे का
कभी तो वो घर आएगा
अपने माँ-बापू की सुध
कभी तो उसको आएगी
जब बेटे का जन्म हुआ तो
कई बधाई गाए हमने
खूब मिठाई बाँटें हमने
ख़ुशी-ख़ुशी सब गले मिले
पर बेटे ने पढ़ते ही
विदेश की रुख कर ली
नई नौकरी नई दुल्हनिया
लेकर वह आँखों से ओझल
हमें सांत्वना देकर गया
जल्दी घर लौट आऊंगा मैया
तेरे-पापा के लिए ढेर गिफ्ट ले आऊंगा
सब मिलकर फिर ख़ुशी-ख़ुशी
मिल बैठकर खाऊंगा
तेरे लिए सुन्दर सी साडी
पापा को दू एक मोबाइल
अपने छुटकी की खातिर
मैं महंगी घडी दिलाऊंगा
तुम बेटे कुछ मत दिलवाना
पर तुम बस अब लौट के आओ
नैन हमारे राह देखते
पथराने अब लगे
तेरी छुटकी शादी करके
दूर शहर में बस्ती हैं
पर हर रोज़ फ़ोन पर
हम दोनों की राजी-ख़ुशी जानती हैं.
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