तुम जीवन पथ पर
निरंतर आगे बढ़ते रहो
कहीं पत्थर कही कंकड़
कहीं गहरी मिलेगी खाई भी
कही ठोकर कहीं उलझन
कहीं विश्वास के भी घात का
सहना पड़ेगा दंश भी
गैरों से भी अपनों की खातिर
अपमान के कुछ घूँट भी पीने पड़ेंगे
जीवन के झंझावात में
राही जो हैं तूफ़ान में
डटकर खड़ा रहता सदा
सफलता की सीढियां अक्सर
वही चढ़ता सदा
पैरों में थे जख्म फिर भी
चल दिए तूफ़ान में
मंजिलों की चाह में
राह फिर दिखता कहाँ
अनगिनत पत्थर मेरे पावों
से
यूँ टकराए थे
जैसे हमको चूर-चूर करके
वो चले जायेंगे
पर हमारा बाल भी बांका
नहीं
वो कर सका
तुम जीवन पथ पर
निरंतर आगे बढ़ते रहो!!
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