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सोमवार, 8 मई 2017

आँसू

अब तुम्हे मेरे नयन इतने पराए लगने लगे.
कभी तो आठो पहर मेरी आखोँ से टपकने को बेताब थे.
आज मुझको ही याद नहीं
कब नयनो में नीर आया था.
मेरी आँचल को गिला कर के
मुझे जी भर कर रुलाया था.
कभी खुशियों के नाम पर
तो कभी गम के नाम पर
कभी जीवन के किसी पैगाम के नाम पर
कभी सास-बहू कि किसी खिटपिट के नाम पर
कभी गुड्डे गुड्डियो कि लड़ाई में रोते थे
तो कभी ज़िन्दगी कि उठापटक में रोते थे
कम से कम रोते तो थे.
आखों से दिल का दर्द
छलकता तो था
पर अब ऐसा क्या हुआ

चाहने पर भी आसूं आखों में नही आता.

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