चिड़ियों की गूंज से नाचे मन मोड़ मोरा
भोड़ भई चांदनी सर पर हैं डोल रही
गंगा किनारे कुछ चहल-पहल हैं मची
गंगा में डुबकी लगाने जुट गई भीड़
भारी
न राग द्वेष मन में ना बैर भाव मन
में
सब मगन हैं अपने धुन में
गंगा की लहरे कदाचित कंप कंपाती सी
निकलती
हमें डुबकी लगाते देख लहरे भी
मदमदाती ऐसे
दे आशीष हम सभी को खुश हैं गंगा मैया
जैसे
गंगा में डुबकी लगाकर भूल सब मैनर गए
पवित्रता की दे दुहाई गंगा को मैला
किया
ज़िन्दगी अपनी सवारी माँ का आँचल मैला
कर
शाम को दीपक जलाकर दे दुहाई भक्ति की
पर हमारा दोष जल सकता नहीं इन दीपकों
से
हमें तो मिलकर उठाना स्वछता का
संकल्प हैं
गंगा मैया स्वच्छ होगी
स्वच्छ अपना देश होगा
अब न दो तुम कोई नारा
अब हमें करके दिखाना
पूरा इस संकल्प को!!
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