यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

शिक्षा

शिक्षा,  शिक्षित,  और शैक्षणिक संस्थान  ये सब आपस में ऐसे जुड़े है  जैसे एक माँ से बच्चे के हृदय के तार  जो दिखाई कभी नहीं देता  पर बच्चों के...

मंगलवार, 30 मई 2017

प्रायश्चित

यह कहानी एक छोटी सी बच्ची, सुरभि, की हैं जिसे ये नहीं पता था कि अपना क्या होता हैं और पराया क्या होता हैं. उसी अनजाने में उससे गलती हो जाती हैं. पर जब उसे यह एहसास होता हैं कि उसने जो किया हैं वह गलत था तो उसे अपने किये पर बहुत पछतावा होता हैं पर तब उस चीज़ को वह ठीक नहीं कर सकती थी और अब उसके पास पछताने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था.
             सुरभि जब पांच साल की थी तब वह अपने रिश्तेदारी में किसी कीं शादी में जाने का मौका उसे मिला पर वहाँ उसकी माँ उसके साथ नहीं थी. घर में शादी का माहौल था. चारों तरफ गहने और नए कपड़ो की धूम थी. सुरभि को उन गहनों में से एक पाजेब बहुत सुन्दर लगा, उसने सोचा कि ये पाजेब अगर उसकी माँ पहनेगी तो बहुत सुन्दर लगेगा और इसकी छनछनाहट से सुरभि अपनी माँ को कहीं भी ढूंढ लेगी. फिर क्या था उसने वो पाजेब चुपके से निकाल कर अपने पास रख ली  और जब वो घर आई तो उसने अपनी माँ से कहा - "ये पायल उसे रास्ते में पड़ी मिली हैं. माँ तुम इसे पहन लो." जब उसकी माँ ने उस पायल को पहना तो वो बहुत खुश हो गयी लेकिन कुछ वर्षों के बाद जब सुरभि को यह एहसास हुआ कि जो उसने किया था उसे चोरी कहते हैं तो उसे बहुत पछतावा हुआ पर अब इस बात को बदला नहीं जा सकता था.
               अतः सुरभि ने ये फैसला किया कि अब आगे वो कोई ऐसा काम नहीं करेगी जो उसके और उसके प्रभु के नज़र में गलत हो और एक बेहतर इंसान बनेगी. यहीं सुरभि के प्रायश्चित था!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें