खोई-खोई रहती हूं मैं
सोई-सोई रहती हूं मैं
हर दिल को जचती हूं मैं
घुल मिलकर रहती हूं मैं
चाँद की छाया
निर्मल माया मिले सदा हर घर को
हर दिल में हो प्यार भरा
जब सब अच्छा हो जाए
सब सच्चे दिल से
अपना धर्म निभाए
सूरज की गर्मी के जैसे
हर मुख पर हो तेज भरा
खोई-खोई गलियों में
सोई-सोई गलियों में
रद्दी वाले की आवाज़
गूंज उठी थी सुबह-सुबह
मेरी आँखे खुलते-खुलते
फिर से नींद में चली गई!!
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