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प्रियतम

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गुरुवार, 18 मई 2017

जज़्बात

ज़िन्दगी और जज़्बात में
चाहत की आस में
खुशियों की बरसात में
अपनों के उस प्यास में
गैरों के बात-बात में
ज़िन्दगी के दो पल को जी लूँ अगर
धडकनों को एहसास दे अगर
कुछ खुबसूरत लम्हे चुडा लूँ अगर
मन बरसात के बूंदों की तरह हो
जब बरसती हैं तो दरिया
से नदी बन जाती हैं
पर जब सुख जाए तो पतझड़ को
दोष दे जाती है.

ज़िन्दगी और जज़्बात में
चाहत की आस में
अपनों के संग-संग चल
खुशियों के सौगात से
दुनिया को रूबरू कराना हैं
कुछ अच्छे पल अपनों को देकर
इस जग को अलविदा कह देना हैं
निकाल जाग हैं अपने सफ़र पर
मेरा कही और कोई इंतज़ार कर रहा हैं
ज़िन्दगी नाम हैं इन लम्हों का
बीत जाए तो कहानी

चल रही हैं तो जिंदगानी.

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