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मंगलवार, 23 मई 2017

विश्वास

उस रात की घटना को आज भी याद कर मेरा मन रोमांचित हो उठता हैं और मेरे मन में एक विचित्र सी ख़ुशी की अनुभूति होती हैं. क्या वाकई पति-पत्नी के बीच विश्वास की डोर इतनी मज़बूत होती हैं कि वह किसी भी मुश्किल की घडी में बगैर सवाल किए साथ देने के लिए हामी भर देती हैं.
                 एक दिन मेरी पत्नी गाँव से आ रही थी. नई दिल्ली पर उसकी ट्रेन रात के 10:30 बजे पहूँचने वाली थी. मुझे उसे लेने के लिए जाना था . नवम्बर का महीना था, हलकी-हलकी सर्दी पड़ने लगी थी. मेरा घर रेलवे स्टेशन से काफी दूर था अतः रात के समय ऑटो-टैक्सी के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. मेरी दुविधा थी कि मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं उसे ऑटो से ला पाता लेकिन मन में कही ना कही यह भरोसा था कि उसके पास तो इतना पैसा होगा ही. जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर पहुंची मैं डब्बे के सामने पहुंच गया और पत्नी के साथ उसका सामान और उसके साथ आए एक मेहमान को लेकर मैं आगे बढ़ गया. बाहर आकर मैंने ऑटो लिया और घर की ओर निकल पड़े. रास्ते में मैंने पत्नी से धीरे से बोला पैसा तुम देना. उसने हामी भर दी तब जाकर दिल को तस्सली आई और एक घंटे के सफ़र के बाद हम घर पहुंच गए.
                 फिर घर के अंदर जाने पर मैंने पत्नी को थैंक्यू बोला तो उसने बस मेरी ओर देख कर मुस्कुरा दिया. मैं बैठे सोचता रहा कि आखिर इंसान की ज़िन्दगी में पत्नी नहीं होती तो एक पुरुष की ज़िन्दगी अधूरी होती. शादी एक पुरुष को परिपूर्ण इंसान बनाती हैं साथ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से परिचित करने का एक जरिया भी हैं.....

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