आसमान में उड़ी पतंग
दूर-दूर तक चली पतंग
कभी लड़ी फिर कटी पतंग
गिर कर भी फिर उड़ी पतंग
एक दूसरे से भिड़ी पतंग
रंग-बिरंगी छोटी-बड़ी
आसमान में सजी पतंग
काटम-काट गुथ्थम-गुथ्था
एक दूसरे से भिड़ी पतंग
दूर-दूर तक उडी पतंग।
हे प्रियतम तुम रूठी क्यों है कठिन बहुत पीड़ा सहना इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा निःशब्द अश्रु धारा बनकर मन की पीड़ा बह निकली तब है शब्द कहाँ कु...
आसमान में उड़ी पतंग
दूर-दूर तक चली पतंग
कभी लड़ी फिर कटी पतंग
गिर कर भी फिर उड़ी पतंग
एक दूसरे से भिड़ी पतंग
रंग-बिरंगी छोटी-बड़ी
आसमान में सजी पतंग
काटम-काट गुथ्थम-गुथ्था
एक दूसरे से भिड़ी पतंग
दूर-दूर तक उडी पतंग।
भोर में जब मिली चाँद तारों से मैं
उनकी मुस्कान में एक अजब बात थी
एक नया जोश था एक नयी बात थी
सुबह की आहट से फैली थी जो रौशनी
हर तरफ का नज़ारा गज़ब था दिखा
हवाओं में थोड़ी सी ठिठुरन भी थी
रात सपने में जो हमने देखा था कल
आज उसको मुकम्मल करना जो था
कोई सपना हमारा अधूरा न हो
कोई मंज़िल हमारी न छूटे कभी।
सब फूलों में सुन्दर फूल
फूल गुलाब है सुन्दर फूल
लाल-पीला काला-नीला
हर रंगों में मिले ये फूल
बिछड़ों को भी खूब मिलाये
रूठों को भी दोस्त बनाये
उदास चेहरे पर ख़ुशी लाये।
आज के इस दौर में बचपन जैसे खो सा गया है
खोता बचपन दोषी कौन
घुटता बचपन दोषी कौन
आज के माहौल में बच्चों का दुश्मन कौन
इन मासूम बच्चों के जीवन का
सबसे बड़ा अपराधी कौन
सब मौन है सब है खामोश
बचपन दम तोड़ रही है
हर तीसरा बच्चा गूंगा-बहरा और स्पेशल है
इस माहौल का ज़िम्मेदार कौन
हर बच्चा अकेलेपन का है शिकार
मायूस होती उनकी हंसती खेलती ज़िन्दगी
कौन सुने उनकी इच्छाएं
दादी-दादा के पास टाइम नहीं
मम्मी-पापा मजबूर है
नानी-नाना के सर पर ही सारा बोझ है।
चलते चलते आज कुछ यूँ याद आते है
मन मगन है मुग्ध मन में गीत गाते है
शाम ढलते ही विरह की याद आती है
चलते-चलते ज़िन्दगी क्या-क्या दिखाती है।
चलते-चलते आज कुछ यू याद आते है
रह गए जो पीछे हमसे याद बन करके
कभी-कभी उनकी याद आती है
कुछ कड़वी कुछ मीठी यादे याद आती है।
चलते-चलते आज कुछ यूं याद आते है
रह गये सपने अधूरे मन मचलता है
अपने ही हर बार हमको छोड़ जाते है
आंसुओ में कर विदा हम उनको आते है।
चलते-चलते आज कुछ यूं याद आते है
दृश्य ये सुन्दर मनोरम याद आते है
हर कठिन लम्हो को फिर हम भूल जाते है
चलते-चलते यूं ही हम कुछ गीत गाते है
फिर कहीं को चल दिए कहीं लौट जाते है।
मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है
चाहकर भी मुस्कुरा पाऊँ ना मैं
हर दिन ख़ुशी की चाह में आँखे हमारी नम हुई
बंद आँखों में भी सपने कभी ना तैरने
खोलकर आँखों को कैसे स्वप्न में विचान करूँ
मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है
भोर से मायूसियो ने ढक लिया ऐसे मुझे
शाम ढलकर भी न कोई ख्वाहिशें जागी मेरी
पुरे दिन बोझिल थी आँखें आँसुओं के खोज में
मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है
चाँद तारों की चमक भी आँख में चुभ सी रही।
आज का बच्चा, थोड़ा सा है सच्चा
पर है फिर भी मन का सच्चा-सच्चा
करता है वह सब कुछ अच्छा-अच्छा
रहता है हरदम वह खोया-खोया
अपना वक्त करता रहता है जाया
अपने मम्मी-पापा के आँखों का है वह तारा
दादा-दादी के प्यार से है दूर-दूर
चाचा-चाची, बुआ-फूफा के रिश्ते से है अनजान
इसीलिए वो घर में लाता है तूफ़ान
अपनी हर चाहत को वह देता है मुकाम
अपना गुस्सा और प्यार दोनों माँ पर ही देता है वार।
नानी का आया संदेश
अपना देश है सबसे प्यारा
इसको याद हमेशा रखना
कड़वे बोल कभी ना बोलना
मीठा हरदम मिशरी घोले
जो करना है वो कर डालो
कल पर उसको कभी न टालो
जीवन है अनमोल हमारा
दोस्त पड़ोसी सब है प्यारे
आस-पास में सबसे प्यार
नानी का आया संदेश
जाएंगे हम पिकनिक मेला
घूमेंगे फिरेंगे नाचेंगे गाएंगे।
यादो को सुलाने में कुछ देर तो लगती है
ख्वाबो को भुलाने में कुछ देर तो लगती है
दिल को समझाने में कुछ देर तो लगती है
आपकी यादों से दूर जाने में कुछ देर तो लगती है
अपनी मासूमियत को छुपाने में कुछ देर तो लगती है
दिल में जलते थे प्रेम के दीये उसे बुझाने में कुछ देर तो लगती है
हम हैं अभी अधूरे-अधूरे से
अपने आप को मुक़म्मल करने में कुछ देर तो लगती है।
मैंने चाहतों की साड़ी उम्मीदे छोड़ दी
खुश रहने लगा हूँ जबसे उम्मीदे छोड़ दी
यूँ ज़िन्दगी को अक्सर जिया हूँ मैं
गरजती बारिशों में भी सूखा रहा हूँ मैं
काली घटाओ में भी रौशनी की चाह रखता था
ज़िन्दगी चाहतों से लवरेज़ थी मेरी
पर तन्हाइयों ने कुछ इस कदर तोड़ दिया
आज खुशियाँ भी काटने को दौड़ती है
रंग बिरंगी खुशियों के बीच
हम कब अकेले हो गए पता ही नहीं चला।
कैसे-कैसे मै खुद को बदल रही हूँ
थाम कर हाथ मेरा साथ चल लो मेरे
आज हर कदम पर फिसल रही हूँ मै
कैसे कैसे मै खुद को बदल रही हूँ
तुम पर भरोसा था साथ देने का
राह में अपने कैसे-कैसे भटक रही हु मैं।
कैसे-कैसे मैं खुद को बदल रही हूँ
कहाँ पता था तुम ऐसे बदल जाओगे
थी बेफ़िक्र तुम्हारे साथ रहने से
अब ख़ौफ़ज़दा हूँ माहौल बदल जाने से।
कैसे-कैसे मैं खुद को बदल रही हूँ
ज़िन्दगी खिलती हुई धुप थी
अब मैं कबसे ढलती सांझ को निहार रही हूँ
सुबह और शाम में कम हो रहा है फासला।
कैसे-कैसे मैं खुद को बदल रही हूँ
पहले तो हवा की सरसराहट में भी संगीत था
अब तो संगीत भी मुँह चिढ़ाने लगा है
ढोलक की थाप से भी दम घुंटने लगा है
ज़िन्दगी हर दिन अपना रंग बदल रही है।
हे माँ मैं हूँ भक्त तुम्हारी
मुझ पर तुम ये दया दिखा दो
रोज़ नए उलझन में पड़कर
मन उलझा रहता है
द्वार तुम्हारे आने को माँ
व्याकुल मन रहता है।
कृपा तुम्हारी कब होगी माँ
हंसी-ख़ुशी दर्शन पाने को
माँ मैं दौड़ी आऊंगी
मुझे प्यार से गले लगाकर
माँ तुम प्यार लुटाओगी
हे माँ मेरी अम्बे माता
जग का दुःख हरने वाली
अपने दर पर इस बेटी की
झोली कब भर पाओगी
बाट जोहती माँ मैं तेरी
वर्षो से बैठी हूँ माँ
हे माँ मैं हूँ भक्त तुम्हारी
मुझ पर प्यार लुटाओ माँ
हमको जग ने ठुकराया पर
तुम भी ना ठुकराओ माँ।
तुम प्रेम हो तुम गीत हो
चाहत के तुम तो मीत हो
तुम नित नए संगीत हो
तुम फूल हो तुम हो कली
तुम ही तो खुशबू रंग हो
हर ओर फैली वादियों में
जल की कल-कल धार हो
तुम मेरी शीतल छाँव हो
तुम हो ख़ुशी तुम गीत हो
तुम ही तो मेरे मीत हो।
सब झूठे रिश्ते नाते हैं
सब दिल रखने की बाते हैं
कब कौन किसी का होता है
सब असली रूप छिपाते हैं
एहसास से खाली लोग यहाँ
शब्दों के तीर चलाते हैं
अपनों का विश्वास तोड़
गैरो पर प्यार लुटाते हैं
दिल में भरकर तूफ़ान यहाँ
चेहरे पर हँसी दिखलाते हैं
सब रहते है अब मौन साध
अपनों से दुरी बनाते हैं
थे खुशियों के रंग जहाँ
ग़म आज वहाँ इतराती हैं
सब झूठे रिश्ते नाते हैं
सब दिल रखने की बाते हैं।