सुख-दुःख के मधुर
मिलन में
हम भूल गए जीवन में
जीवन ग़म और ख़ुशी में
गैरों-अपनों के भ्रम
में
कभी चाहत में अन-बन
में!
सुख-दुःख के मधुर
मिलन में
जीवन भर के इस रण
में
कभी हार तो कभी विजय
के क्षण में
अपनों के विरह मिलन
में
हर पल पाने खोने के
डर में!
सुख-दुःख के मधुर
मिलन में
चलने-रुकने के क्रम
में
आगे बढ़ने के क्रम
में
बस होड़ लगी है रण
में
सब छोड़-छाड़ के क्षण
में!
सुख-दुःख के मधुर
मिलन में
पहुंचे जब प्रभु शरण
में
भर आँख मेरी तब आई
क्यों भागम-भाग के
क्रम में
सब कुछ पाने के क्रम
में!
सुख-दुःख के मधुर मिलन में
रह गए अधूरे जीवन
में
मानव सेवा के प्रण
में
सुख-दुःख के मधुर
मिलन में
रह गए अकेले रण में!
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