हर ओर घटा छाई है काली-काली
दसों दिशायें गूँज रही हैं
इन्द्रदेव के गर्जन से
मोर-मोरनी नाच रहे हैं
झूम-झूम के बागों में
गली-गली में मगन हैं बच्चे
अपनी ख़ुशी मनाने में
रोम-रोम पुलकित हो उठता
इस सुहावने मौसम में
तुम काश मेरे संग होते
तो आज मैं कह पाती
जो वर्षो से न कह पायी
इस मौसम में दूरी हैं
अपनी ये मजबूरी हैं
हर साल हैं सावन आता
पर इस सावन की बात अलग हैं!
हर ओर घटा है छाई काली-काली
जब-जब आसमान में गर्जन होता
बच्चे सहम हैं जाते
पर पेड़ो को देखो कैसे झूम रहे हैं
पर पेड़ो को देखो कैसे झूम रहे हैं
जैसे कोई बिछड़ा साथी
आज हैं मिलने आया
झूम-झूम के नाच रहे हैं
अपनी ख़ुशियाँ बाँट रहे हैं
प्रकृति प्रेम की अजब छटा हैं
आसमान में दूर घटा है
मन में तैरती ख़ुशी की लहरें
आज हैं वर्षो बाद!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें